बुधवार, 31 दिसंबर 2008

हैप्पी न्यू इयर.

मेरे सभी ब्लॉगर साथियों,

आपको और आपके सहपरिवार,

और आपके इष्ट-मित्र सभी को,

नए साल की ढेरो शुभकामनाये।



हैप्पी न्यू इयर।

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मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

जी तो चाहा था मुस्कराने को!



आखरी टीस आजमाने को,


जी तो चाहा था मुस्कराने को।


कितने मजबूर हो गये होंगे,


अनकही बा मुंह पे लाने को।


खुल के हंसना तो सबको आता है,


लोग तरसे है इक बहाने को।


हाथ काँटों से कर लिए जख्मी,


फूल बालो में इक सजाने को।


आस की बात हो की साँस 'अदा',


ये खिलोने थे टूट जाने को।


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रविवार, 28 दिसंबर 2008

नाम भले ही हिंदुस्तान है.

नाम भले ही हिंदुस्तान है,
यह एक टूटी हुई कमान है,
अपनी रोटियों की सबको फ़िक्र है,
इसलिए सस्ता हुआ ईमान है,
नाम भले ही हिंदुस्तान है।
अचरज मुझे इस बात पर है दोस्तों,
बिना रीढ़ के भी चल रहा इंसान है,
जी नही पता है अच्छा आदमी,
अब जिन्दगी ही मौत का सामान है,
नाम भले ही हिंदुस्तान है।
एक-दुसरे से लड़ है लोग सब,
आतंक यहाँ इसलिए आसान है,
नाम भले ही हिंदुस्तान है।

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शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

एक सवाल आप सबसे!

एक सवाल जो आज सुबह से मेरे जहन में उठ रहा है। मै आप लोगो से पूछ रहा हूँ.और इस सवाल को पढ़ कर आप लोगो के मन में जो भी जबाब आए दे सकते है। क्योंकि आप लोग अपनी प्रतिक्रिया देंगे तो मै उसी प्रतिक्रिया के ऊपर मै अपना प्रतिक्रिया दूंगा।


सवाल - वह कोन सी मज़बूरी,ओ कोन सा ऐसा क्षण,और किन्ही कारणों से जो आदमी आतंकवादी बन जाते है?

और उस आदमी को आतंकवादी बनाने और बनने के पीछे मुख्यत-किन-किन चीजो और किसका-किसका हाथ मुख्य रूप से होता है?

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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

एम्.बी. ऐ.वो है जो...

MBA वो है जो अक्सर फसाता है .

Interview के सवाल मे,

बड़ी कम्पनियों की चाल मे,

Boss और Client के बवाल मे,

MBA वो है जो पाक गया है Meetings के जंजाल मे,

Submission की गहराई मे,

Teemwork की छंटाई मे।

MBA वो है जो लगा रहता है,

Schedule को फैलाने मे,

Targets को खिसकाने मे,

रोज नये-नये Bahaano मे।

MBA वो है जो Lunch टाइम Beakfast करता है,

Dinner टाइम मे Lunch करता है,

Commutation के वक्त सोया करता है।

MBA वो है जो पागल है,

चाय और समोसे के प्यार मे,

सिगरेट के खुमार मे,

Birawatching के विचार मे,

MBA वो है जो खोया है,

Reminders के जबाब मे,

ना मिलने वाले हिसाब मे,

बेहतर भविष्य के ख्याब मे।

MBA वो है जिसे इंतजार है,

Weekend Night मनाने का,

Boss के छुट्टी पर जाने का,

Increment की ख़बर आने का।

MBA वो है जो सोचता है,

काश पढ़ाई मे ध्यान दिया होता,

Teacher से पंगा न लिया होता,

काश इश्क न किया होता,

और सबसे बेहतर तो ये होता,

कमबख्त MBA ही ना किया होता...

कल मुझे एक बहुत पुराने मित्र से मुलाक़ात हुई.मैंने खूब रात भर बात की.और जब मैंने उसका हालचाल पुछा तो उसी ने कहा !

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गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

ज्ञान बड़ा इस इन्सा का,पर अक्ल बड़ी छोटी है?रोटी के लिए हर जंग हुई,हर जंग के पीछे रोटी है!!

बाहर हमे लगता है, की हमने ज्ञान पा लिया है.जो आतंक बरपाते है-उन्हें लग रहा है की ज्ञान हो गयी है.वे सब जानते है,उन्हें जो बहकते है, वे सोंचते है,की उन्हें सब ज्ञान है.मुझे आशचर्य होता है की जो पैसे के पीछे पड़े है,उन्हें लगता है की उन्हें सब मालूम है.जो पद के पीछे पड़े है-उन्हें लगता है ज्ञानी है,और जो देश व समाज का नेतृत्व कर रहे है,उन्हें भी लगता है की सब ज्ञान है। मुझे आस-पास इतने ज्ञानी मिलते है,की मुझे लगता है,संसार ज्ञान से कम ज्ञानियों से ज्यादा भरा हुआ है,और यही सच है तो फ़िर दुनिया में दुःख क्यों है?जो आतंकी पकड़ा गया है अजमल कसब,उसने पाकिस्तान भेजे गये अपने पत्र में ख़ुद को दुनिया का बहुत बड़ा गुनाहगार माना है क्यों?जब वह गोलिया बरसा रहा था तब ज्ञान क्यों नही आया?क्योंकि तब उसे लग रहा था की वह ज्ञानी है,उसे ज्ञान प्राप्त है की वह जो कर रहा है वही धर्म है,उसे जन्नत मिलेगी,अब वह जन्नत कहाँ है?उसे जिन लोगो ने यह सब समझाकर उसका बेरेन्वास किया था,कहां है वे जन्नत के ठेकेदार?और साथ में उसे लालच दिया गया था.डेढ़ लाख रूपये का.यह रकम उसके वालिदैन को-माता-पिता को मिलनी थी?क्या मिली?यानि जब धर्म का बहाना छोटा पड़ गया तो रोटी का टुकड़ा फेका गया...और आदमी के साथ सबसे बड़ा सच यह की उसे भूख लगती है,भूख रोटी से मिटती है,इसलिए भूखे से आप कोई भी पाप करा सकते है,भूख का जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकते है,हमारे ही मुल्क में अलग-अलग दावों के अनुसार ६६%से लेकर ७८%तक लोग भरी गरीबी में जी रहे है,उन्हें भूखा रखकर उनके वोट वतोरे जा रहे है.सिकंदर से एक फ़कीर ने पुछा की मान लो तुम एक भयानक रेगिस्तान में भटक गये,तुम्हे जमकर प्यास लगी हो,कही पानी नही है,तुम चटपटा रहे हो,और इसे में कोई आधा गिलास ही सही पानी लेकर आए तो तुम उसे क्या दोगे?मई ...सिकंदर ने झट से कहा-उसे अपना पुरा राज्य ही दे दूंगा-फ़कीर मुस्करा कर बोला,देख लो तुम्हारे साम्राज्य की कीमत आधा गिलास पानी!तो,आदमी को भूखा रखो और चाहे जो करालो,एक आदमी से दुसरे का खून करालो,यही तो हो रहा है.हमने एक ऐसी भयानक दुनिया बना ली है,जहाँ भूख ने इंसानियत पर कब्जा कर लिया है.जहाँ भूख से बचने के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है,जहाँ हर तरह से भूख मार रही है-गरीबी-बेकारी-तंगहाली हो या युद्ध,आतंकवाद या घोटाले,भर्ष्टाचार सबके पीछे कही न कही रोटी है,कारण क्या है?कुछ चालक लोगो ने शेष इंसानी-दुनिया की रोटियों पर जीने का अधिकार पर कब्जा कर लिया है.इस देश में गरीबी और बेकारी की मार इतनी ज्यादा है की समाज का युवा वर्ग तेजी से अपराधीकरण की ओर बढ़ रहा है.ऐसे में किसी न किसी तरह वह शातिर अप्रध्यो या आतंक्कियो के चंगुल में फस जाता है.कसाब भी एक ऐसा ही युवक है वह आतंकवादी बन गया.पता नही कुछ लोग जो भूख का इस तरह सोडा करते है,वे क्या कहर इस दुनिया पड़ धायेंगे

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गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

बम और हम! भाग २

आपको-शायद बहुतो को यह बात बुरी लगेगी.लेकिन एक बात जो बरी साफ है,कह दूं की आतंकवाद के लिए भले ही बीज विदेशी हो,जमीन हमारी है.हमने भी जमीन ऐसी उपजाऊ बना रखी है,की विदेशी आतंक का बीज आसानी से बो रहे है और हम है की जमीन को और उपजाऊ बना रहे है अब महाराष्ट्र में देखिये,आतंकी हमले कर के मर गए,कुछ छिप गए,बताये जा रहे है?ऐसे ही हमने अपने सम्पूर्ण देश व समाज में किया है,आतंक के लिए खेत तैयार कर दिए है.अच्छी तरह से जोत दिया है,सिंचाई की व्यवस्था है,उर्वरक है-सब तो उपलब्ध है,फ़िर कैसे विदेशी आतंक के बीज न बोने आए?उन्हें मालुम है की भारत में आतंक का छिपा उद्ध प्राक्सी वार वे बीस सालो से सफलता पूर्वक लादे हुए है,इसीलिए तो वे बार-बार आते है-जमीन से,जल से,और अब हवाई मार्ग से आयेंगे?कोन रोक पाया है, जो अब रोकेगा?वे नए तरीके ढूंढ लेंगे,फ़िर चकमा दे देंगे,तब फ़िर हम उन नए तरीको को लेकर आपस में एक-दुसरे के सी फोरेंगे यही तो कर रहे है.आतंकी हमलो के बाद रोज-रोज नए-नए विश्लेषण हो रहे है-ऐसे आए.यहां से आए,ऐसे दिया आतंक को अंजाम?आतंकियों ने जैसा चाह वैसा किया,हम अपने दरवाजे बंद नही कर पाए उनके लिए,हमारे वाचमैन सजग-तत्पर सक्षम नही रहे-वे हमारे घर में घुस आए!मतलब यह की घर में कोई गड़बडी है.इस घर या देश में कोई गड़बडी है.हमने अपने ही देश में ऐसे हालात बनाये है, ऐसी जमीन तैयार की है,जिसमे आतंक के फसल बोई - काटी जा सकती है.तो,क्या है ये हालात?कैसी है यह जमीन!क्या आप चाहेंगे की थोड़ा समय दे.और इस बारे में ढंग से सोंचे!हमारे इस मुल्क -इस समाज में जो भयानक गरीबी और विसमता है,जो भयानक शोषण और भर्ष्टाचार है-इन्ही के कारन बनी है जमीन-जिस पर बाहरी आतंकी बीज बोते है आतंक के!आप पाएंगे की यह भयानक भेदभाव!यह प्रचंड गरीबी और शोषण,यह भयंकर भर्ष्टाचार-हमारी सम्पूर्ण 'राष्ट्रिय जीवनशैली'को विकृत कर चुके है,'बुभुक्षित की न करोति पापं' भूखा कोन सा पाप नही करता!इसका अर्थ यह नही की हर भूखा पापी या अपराधी है.भूख सब को लगती है.भूख पाप नही है.लेकिन हम समाज में ऐसी विषमता पैदा करते है की लोग करोडो की संख्या में भुखमरी के शिकार हो,यह अपराध है,यह पाप है,एक बात आपको सही लगे न लगे!मई साफ कहना चाहता हू की हम अगर गरीबी,विषमता व भर्ष्टाचार से मुक्ति पा ले तो हम समृद्ध,सक्षम व इमानदार समाज में बदल जायेंगे.हम आतंकवाद ही नही हर तरह की हिंसा का जवाब देने की ताकत हासिल कर लेंगे!आतंकवाद सीमा पार से आकर यहाँ आश्रय पता है,यहाँ अपने निशाने चुनता है,यहाँ अपने हथियार छुपाता है,और फ़िर यही कत्लेआम करता है,यहाँ सत्ता -समाज में खलबली पैदा कर देता है-अराजकता पैदा हो जाती है.लोग प्रतिक्रिया में बदला लेने की बात सोचने लगते है.यह सब क्या है?हिंसा व आतंक की जमीन ही तो है!हम यह जमीन बनाना बंद कर दे तो हर तरह के आतंकवाद की जड़े ही उखड जायेगी!

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सोमवार, 8 दिसंबर 2008

बम और हम! भाग-1

हम एक-दुसरे की आंखो में आंखे डालकर तो देख नही सकते,और जब आंखो में ही इतनी निश्छलता,निर्दोषिता नही है,इतनी भी निर्भीकता नही है.तब हम आपस में एक-दुसरे से प्रेम कैसे करेंगे और प्रेम नही करेंगे तो बंधुत्व और एकता कहां से होगी?एसे में जब हम राष्ट्रिय एकता की बाते करते है,तो क्या हम सिर्फ़ अपने-आपको सात्वना ही नही दे रहे होते है,क्या हम यही नही भीतर से जान रहे होते है की हम सिर्फ़ एसी बाते कर रहे है,जिनमे हम कोई अर्थ ख़ुद नही भर पाते?माफ़ कीजिये मेरे मुल्क के लोगो-मैंने यह सच कह दिया है.यह सच बुरा लग सकता है,मगर सच यही है की आज हम परस्पर एक-दुसरे से भयभीत है और अपनी सुरक्षा चाहते है-हमें एक-दुसरे पर विशवास नही है,क्योंकि हम निर्भय नही है,सिर्फ़ इस भय से की हम सुरक्षित है,एक-दुसरे पर संदेह के सच पर पर्दा डालकर बंधुत्व की बाते करते है,राष्ट्रिय-सामाजिक एकता की बाते करते है.मुझे एक बात पसंद आई जो न्यायमूर्ति पि.बी.सावंत ने कही की 'यह आतंकवादी हमले होते क्यों है?उनका मूल हमें खोजना चाहिए'मै समझता हूं की यह कर्तव्य हर एक भारतीय का है,हर उस व्यक्ति का है जो चाहता है की भारत ही नही दुनिया में कही कोई आतंकबाद न हो!और यह तब ही संभव है जब भयमुक्त जीवन जीने में हम समर्थ हो,क्योंकि भय और हिंसा ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु है,और यही सिक्का वर्तमान विश्व-मानव समाज में चल रहा है, खे यह तब से चल रहा है जब मनुष्य और मनुष्य में परस्पर संदेह पैदा हुआ,संदेह से भय पैदा हुआ और भय से हिंसा पैदा हुई.जैसे ही मनुष्य और मनुष्य में परस्पर संदेह पैदा हुआ-प्रेम,बंधुत्व,रिश्ते समाप्त हो गए,सिर्फ़ घृणा व शत्रुता पैदा हुई,और सम्पूर्ण समाज धीरे-धीरे इसी घृणा व शत्रुता का शिकार होता चला गया!हम में परस्पर विशवास नही है,क्यों?विशवास तो बहार की चीज है.भगवान् है,धर्म है,सत्य है,जीवन है,असित्व है-जब हम यह सीखते है तो कही अविश्वास-कही संदेह-कही भय पैदा होता है.जब हम अनुभव से से जानते है,जब हमें सिखने की जरुरत नही पड़ती,तब हम बिना प्रयास के एक-दुसरे पर विशवास करते है,प्रेम करते है.एक हत्यारे के बगल में उसकी प्रेमिका निश्चिंत सो जाती है-क्योंकि उसे मालुम है की वह उसे प्रेम करता है.वहां भय नही है,जहाँ प्रेम होता है वहां भय नही होता,जहाँ भय है वहां प्रेम नही है,दोनों उसी तरह प्रतिकूल स्थितिया है-जसे अंधेरे-उजाले,रात व दिन जैसी स्थितिया है.तुलसीदास ने लिखा है 'भय बिनु होई प्रीती'-मै इसके पक्ष में नही हूं दरअसल इसे ही जीने का मन्त्र मन लिया गया है.जरा आप देखिये माता-पिता व शिक्षक तक बच्चो में भय पैदा करते है और चाहते है की वे उसे प्रेम करे?यह कैसे संभव है?हम बुनियाद ही ग़लत दाल रहे,बिज में ही भय का जहर-तब प्रेम पूर्ण,भयमुक्त निर्भीक समाज या मानव विश्व का निर्माण कैसे करेंगे?तब हम सिर्फ़ एक-दुसरे से स्वार्थो के जरिय जुड़े रहेंगे-जैसे ही हम पाएंगे की हम एक-दुसरे का इस्तेमाल नही कर सकते,एक-दुसरे का शोषण नही कर सकते,अपने स्वार्थ नही साध सकते,हम संबंधो को खत्म कर देंगे,यही हमारी असलियत है आपको बुरा लगे तो लगे!परिवार,फ़िर समाज,फ़िर राज्य,सरकार और यह दुनिया...सबके-सब परस्पर अविश्वास संदेह व भय के आधार पर खडे है,यही आतंकवाद या हर तरह की हिंसा का एकमात्र कारन है,हमारे धर्म कहते है प्रेम करो!क्यों?क्योंकि जिन्होंने उन धर्मो का परवतन किया,वे धर्म का परवतन नही बल्कि प्रेम का परवतन करना चाहते थे.धर्म तो हमने बना लिए.पंथ,समुदाय,संप्रदाय हमने बना लिए.शब्दों से हम खेलने लगे वे जानते थे की हम-इस दुनिया के सबसे विवेकशील मने जाने मनुष्य प्रेम कर नही पा रहे है,भीतर प्रेम प्रकट ही नही हो पा रहा है,तब बहार प्रेम कैसे हो?उन्होंने इसलिए हमें प्रेम का संदेश दिया.प्रेम पर इसलिए सर्वाधिक बल दिया गया,क्योंकि प्रेम के बिना घृणा,भय,संदेह,हिंसा व विनाश के सिवा कुछ हाथ नही लगता.हमारी शिक्षा ही प्रेम के खिलाप खड़ी है,हमारे शिक्षक ही प्रेम नही करते.हमारी शिक्षा ही भेदभाव,महत्वकांक्षा,प्रतिस्र्पधा की भयानक हिंसा के अधारो पर खड़ी है,तब हम किस तरह अहिंसक,करुना से परिपूर्ण व भयमुक्त निर्भीक समाज का निर्माण किया जान सकता है.परस्पर बंधुभाव पैदा करने की जरूरत ही नही होनी चाहिए.यह भावः भीतर से स्वाभाविक प्रकट होना चाहिए.जब तक एसा नही होता.जब तक हमारे हिरदय में निर्मलता नही होती तब तक बहार हम हिंसा ही पैदा कर सकते हैदुःख ही पैदा कर सकते है,और अगर प्रेम होता तो हम एक-दुसरे का एक पैसा का,एक क्षण भी शोषण नही कर सकते,तब न तो कोई भेदभाव कर सकता,न कोई किसी से अतिरिक्त लाभ ले सकता,नही कोई किसी को नुकसान पहुचाने की बात भी सोच सकता,चूँकि आज यह सब है,इसलिए हमें पुरी प्रमाणिकता,पुरे साहस से यह स्वीकार कर लेना चाहिए की हम एक-दुसरे से प्रेम नही करते,और इसलिए हिंसा है,विनाश है,युद्ध है,आदमी के हाथो आदमी मरे जान रहे है,आप भी खोजे!अपने भीतर उस सच को,जो इस बाहर के दुःख का कारन बता देता है.मुझसे सहमत हो या न हो,लेकिन जब तक हम परस्पर प्रेम नही कर पाते,इस जगत में आतंकवाद जारी रहेगा.अंत में जाते-जाते एक बात आप सभी से कहना चाहूँगा...'जब तक हम इतने निर्दोष न हो की एक-दुसरे की आंखो में आंखे डालकर देख सकेतब तक आतंकवाद जारी रहेगा!

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गुरुवार, 27 नवंबर 2008

जय महाराष्ट्र!

भारत एक राष्ट्र है.इस में एक महाराष्ट्र है तो दूसरी तरफ़ सोराष्ट्र है.और आदमी का नाम धिर्त्राष्ट्र है,और जब कभी भी धिर्त्राष्ट्र पैदा होता है तो वह अंधा होता है। इसलिए महाभारत होता है.मई चाहता हूँ की भारत-भारत ही रहे,प्रतिभारत रहे,लेकिन वह महाभारत कदापि न बने.आज भारत ही नही हमारा जीवन भी महाभारत बन चुका है.उसमे कौरव-पांडव आमने-सामने खड़े होकर युद्धकी भाषा बोल रहे है.राष्ट्र हो या महाराष्ट्र,कोई कही भी रह सकता है,मुम्बई पुरे देशवासिओं का है.आज मुम्बई से उत्तर भारतिओं को निकला जा रहा है,क्यों भाई?कुदरत ने हमें सिर्फ़ जमीं बख्सी थी,लेकिन हमने कही हिंदुस्तान बनाया और कही पाकिस्तान.हमने जमीं को तो बांट दिया लेकिन हमारी ताकत उस समय मानी जायेगी,जब हम वायु को बांटकर दिखायेंगे.

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बुधवार, 12 नवंबर 2008

हे ईश्वर...कहां हो...?

...ईश्वर तो यकीनन है...एक बार की बात है ईश्वर अपने लिए एकांत खोज रहा था...मगर अनगिनत संख्या में मानव जाती के लोग उसे एकांत या विश्राम लेने ही नही देते थे...नारद जी वहां पहुंचे...ईश्वर का गमगीन चेहरा देख,परेशानी का सबब पूछा...कारण जान हंसने लगे...ईश्वर हैरान नारद बजाय सहानुभूति जताने के हंसते है...नाराज हो गए...तो नारद ने उसे कहा,'भग्वान'आदमी बाहर ही आपको खोजता है...अपने भीतर वो कभी कुछ नही खोजता...आप उसी के भीतर क्यों नही छिप जाते...ईश्वर को बात पसंद आ गई...तब से आदमी के भीतर ही छिपा बैठा रहता है...और एकाध इक्का-दुक्का आदमी ही उसकी खोज में अपने भीतर उतरता है...ईश्वर भी खुश...आदमी भी खुश...

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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

माँ का हाल पूछने की फुरसत कहां है?

आज चैबिसो घंटे दुनिया में होने वाली घटनाओं पर हमारी नजर रहती है,मगर परिवार में वाले एक पल की ख़बर तक नही रहती आख़िर क्यों दुनिया से बढता संपर्क हमें अपनो से ही तोड़ रहा है,वैसे तो ये छोटी-छोटी सी बात लगती है,लेकिन हमारी आज की जिंदगी में यह बात बहुत बड़े पैमाने पर असर करती है,आज के लड़के हर रोज इंटरनेट पर नए दोस्त बना रहे है लेकिन पड़ोस में क्या हो रहा?रिश्तेदारों का क्या हालचाल है,इस पर इन बीजी लड़को से बात करो तो इनका सीधा सा जबाब होता है."क्या करू यार!टाइम ही नही मिलता"'इसमे कोई दो राय नही की आज के दोड़ में वक्त की कमी का यह्सास हर किसी को है.लेकिन क्या सचमुच सिर्फ़ वक्त की कमी के कारण ही ये अपने रिश्तेदारों से संपर्क नही बना पाते है?टाइम नही होना इस बात का रोना ज्यादातर कामकाजी लड़के ही रोते है.यही लड़के अपने दोस्तों से तो यह उमीद करते है की दोस्त उनका हालचाल पूछे या जन्मदिन की बधाई दे.लेकिन जब इनकी ख़ुद की बारी आती है तो फ़िर वही काम की परेशानी। टाइम नही मिलने का बहाना करते है.इसके बाद उसके दोस्त लोग भी उससे कटने लगता है फ़िर इनका आपसी संवाद भी बंद हो जाता है शुरू में भले ही लड़के इस बात को माइंड ना करे लेकिन दोस्तों की कमी किसी भी लड़के के लिए अच्छी नही होती अकेला इंसान बहुत जल्दी डिप्रेशन में आ जाता है उसके जीवन का संगीत धीमा पड़ जाता है आफिस के काम और घर की व्य्व्सतता के बिच भी टाइम निकाला जा सकता है,जरुरत है सही मनेजमेंट की बोस को किसी काम के लिए न नही कह सकते साथ में काम करने वाले सहकर्मी ने कोई काम कहा या कही चलने को कहा तो तुंरत चल देते है.लेकिन सबको हां कहने के चक्कर में अपने करीबी दोस्त या रिश्तेदारों के साथ खाना खाने जाने का प्रोग्राम पोस्ट पोंड कर देना परता है इस तरह दोस्तों के साथ वक्त बिताने का मोकानही मिल पता.जिसे आदमी चाहते हुए भी हर रोज की काम से पुरी तरह फ्रेश नही हो पता जिंदगी के हसीं क्षणों को खो देना भी समजदारी नही होती,आज पुरी दुनिया भले ही सिमित हो गई है,लेकिन लोगो के बिच संवेदनाओं संपर्को के सत्तर पर दूरिया बेहिसाब बढती जा रही है आपसी संबंधो को तजा करने की कोशिश हफ्तों से महीनो और फ़िर महीनो से बार्षिक हो जाती है बल्कि आपसी संबंधो की दुरिया अब तो इसे भी बड़े अन्तराल की तरफ़ बाद गयी है.लोग इंटरनेट के जरिय दुनिया भर में मित्र बनाते है.विदेशो के कई मित्रो के जीवन पर बातें होती है लेकिन अपने आस- पास के जीवन से वे पूरी तरह बेखबर हो जाते है यही कारण आज बढ़ते हुए असंतोष का है पुराने टाइम में लोग थोड़े में ही संतोष कर लेते थे,मगर आज सबको साड़ी भोतिक सुविधाए चाहिए उसके लिए पैसा चाहिए.फ़िर इस पैसे को कमाने के चक्कर में हर किसी का पूरा वक्त लग जाता है.आज जब भी किसी को थोड़ा बहुत टाइम मिलता है,लोग यही सोंचते है की थोड़ा आराम करले.काम से बोर हो जाते है तो देश विदेश के टूर पर निकल जाते है लेकिन एसे लोग भी है जो कभी-कभी जरूरी काम छोड़कर दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते है यह सच है की अपनो से मिलकर भी आदमी उतना ही तरोताजा महसूस कर सकता है जितना की कही पिकनिक या यात्रा पर जाने से.आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में हर किसी की कोशिश यही होनी चाहिए की अपने करीबी लोगो से दूर जाने के बजाय अपने को उनके करीब लाये जिंदगी की रायल्टी भी यही है.आजकल तो मोबाइल या एसएमएस से भी आदमी अपनी संवेदनाये अपनो तक पहुँचा सकता है.एसे में अपनो से दूरिया नजदीकियों में क्यों नही बदल सकती?

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शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

यह भारत तो हमारा नही है !

माफ़ करे,मै लगातार देख रहा हू कि सारी दुनिया को परिबार माननेवाला भारत ओंर पासायंन के रूप में विशव कल्याण कि कामना करने वाला महाराष्ट्र- दोनों को लेकर अब यह कहने का समय आ गया है कि हम एक परदेश एक देश के रूप में रहने में लगातार असफल हो रहे है,यह भारत तो हमारा भारत नही है ? सारे देश में इस कदर परचंड बेरोजगारी है कि हर बेरोगार उसकी दुनिया अंदेरे में दिखाई दे रही है ,एक बेरोजगार कि व्यथा सिर्फ़ वही जनता है क्योंकि उसे यार-दोस्तों की नजरो में तो शर्मिंदा होना ही परता है ,घर में माँ -बाप तक ताने देते है ,भाई -बहन भी उसे नाकारा या बोझ समझते है .पत्नी-बच्चे तक उसका साथ नही देते! आभाव भूख ओर शर्म की भयानक तरास्दी से बेरोजगार जब गुजरता है तो आत्महत्या तक के बिचार मन में आने लगते है .राजनेताओं ने तो अपनी रोटिया सकने में तो उस्तादी हासिल कर ली है .देश जलता है .युवाओं के जख्मो और लाशो या जिन्दोव मुर्दों की चिताओं के आग में वे छप्पन पकवान बनाते-खाते है उनकी सत्ताए सुरखित रहती है .यही सत्ता की चाबी है -दूसरी ओर बेरोजगार अपने सीने पर जिन्दगी का बोझ लिए जीने पर मजबूर रहते है, वे चाहे जहाँ के हो,ज्यादा फर्क नही है। कृपया इस दर्द को महसूस करे!वैसे भी बेरोजगार जिन्दा कहाँ होते है? शेस-शुभ, और क्या कहू?

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