शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

माँ का हाल पूछने की फुरसत कहां है?

आज चैबिसो घंटे दुनिया में होने वाली घटनाओं पर हमारी नजर रहती है,मगर परिवार में वाले एक पल की ख़बर तक नही रहती आख़िर क्यों दुनिया से बढता संपर्क हमें अपनो से ही तोड़ रहा है,वैसे तो ये छोटी-छोटी सी बात लगती है,लेकिन हमारी आज की जिंदगी में यह बात बहुत बड़े पैमाने पर असर करती है,आज के लड़के हर रोज इंटरनेट पर नए दोस्त बना रहे है लेकिन पड़ोस में क्या हो रहा?रिश्तेदारों का क्या हालचाल है,इस पर इन बीजी लड़को से बात करो तो इनका सीधा सा जबाब होता है."क्या करू यार!टाइम ही नही मिलता"'इसमे कोई दो राय नही की आज के दोड़ में वक्त की कमी का यह्सास हर किसी को है.लेकिन क्या सचमुच सिर्फ़ वक्त की कमी के कारण ही ये अपने रिश्तेदारों से संपर्क नही बना पाते है?टाइम नही होना इस बात का रोना ज्यादातर कामकाजी लड़के ही रोते है.यही लड़के अपने दोस्तों से तो यह उमीद करते है की दोस्त उनका हालचाल पूछे या जन्मदिन की बधाई दे.लेकिन जब इनकी ख़ुद की बारी आती है तो फ़िर वही काम की परेशानी। टाइम नही मिलने का बहाना करते है.इसके बाद उसके दोस्त लोग भी उससे कटने लगता है फ़िर इनका आपसी संवाद भी बंद हो जाता है शुरू में भले ही लड़के इस बात को माइंड ना करे लेकिन दोस्तों की कमी किसी भी लड़के के लिए अच्छी नही होती अकेला इंसान बहुत जल्दी डिप्रेशन में आ जाता है उसके जीवन का संगीत धीमा पड़ जाता है आफिस के काम और घर की व्य्व्सतता के बिच भी टाइम निकाला जा सकता है,जरुरत है सही मनेजमेंट की बोस को किसी काम के लिए न नही कह सकते साथ में काम करने वाले सहकर्मी ने कोई काम कहा या कही चलने को कहा तो तुंरत चल देते है.लेकिन सबको हां कहने के चक्कर में अपने करीबी दोस्त या रिश्तेदारों के साथ खाना खाने जाने का प्रोग्राम पोस्ट पोंड कर देना परता है इस तरह दोस्तों के साथ वक्त बिताने का मोकानही मिल पता.जिसे आदमी चाहते हुए भी हर रोज की काम से पुरी तरह फ्रेश नही हो पता जिंदगी के हसीं क्षणों को खो देना भी समजदारी नही होती,आज पुरी दुनिया भले ही सिमित हो गई है,लेकिन लोगो के बिच संवेदनाओं संपर्को के सत्तर पर दूरिया बेहिसाब बढती जा रही है आपसी संबंधो को तजा करने की कोशिश हफ्तों से महीनो और फ़िर महीनो से बार्षिक हो जाती है बल्कि आपसी संबंधो की दुरिया अब तो इसे भी बड़े अन्तराल की तरफ़ बाद गयी है.लोग इंटरनेट के जरिय दुनिया भर में मित्र बनाते है.विदेशो के कई मित्रो के जीवन पर बातें होती है लेकिन अपने आस- पास के जीवन से वे पूरी तरह बेखबर हो जाते है यही कारण आज बढ़ते हुए असंतोष का है पुराने टाइम में लोग थोड़े में ही संतोष कर लेते थे,मगर आज सबको साड़ी भोतिक सुविधाए चाहिए उसके लिए पैसा चाहिए.फ़िर इस पैसे को कमाने के चक्कर में हर किसी का पूरा वक्त लग जाता है.आज जब भी किसी को थोड़ा बहुत टाइम मिलता है,लोग यही सोंचते है की थोड़ा आराम करले.काम से बोर हो जाते है तो देश विदेश के टूर पर निकल जाते है लेकिन एसे लोग भी है जो कभी-कभी जरूरी काम छोड़कर दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते है यह सच है की अपनो से मिलकर भी आदमी उतना ही तरोताजा महसूस कर सकता है जितना की कही पिकनिक या यात्रा पर जाने से.आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में हर किसी की कोशिश यही होनी चाहिए की अपने करीबी लोगो से दूर जाने के बजाय अपने को उनके करीब लाये जिंदगी की रायल्टी भी यही है.आजकल तो मोबाइल या एसएमएस से भी आदमी अपनी संवेदनाये अपनो तक पहुँचा सकता है.एसे में अपनो से दूरिया नजदीकियों में क्यों नही बदल सकती?

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शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

यह भारत तो हमारा नही है !

माफ़ करे,मै लगातार देख रहा हू कि सारी दुनिया को परिबार माननेवाला भारत ओंर पासायंन के रूप में विशव कल्याण कि कामना करने वाला महाराष्ट्र- दोनों को लेकर अब यह कहने का समय आ गया है कि हम एक परदेश एक देश के रूप में रहने में लगातार असफल हो रहे है,यह भारत तो हमारा भारत नही है ? सारे देश में इस कदर परचंड बेरोजगारी है कि हर बेरोगार उसकी दुनिया अंदेरे में दिखाई दे रही है ,एक बेरोजगार कि व्यथा सिर्फ़ वही जनता है क्योंकि उसे यार-दोस्तों की नजरो में तो शर्मिंदा होना ही परता है ,घर में माँ -बाप तक ताने देते है ,भाई -बहन भी उसे नाकारा या बोझ समझते है .पत्नी-बच्चे तक उसका साथ नही देते! आभाव भूख ओर शर्म की भयानक तरास्दी से बेरोजगार जब गुजरता है तो आत्महत्या तक के बिचार मन में आने लगते है .राजनेताओं ने तो अपनी रोटिया सकने में तो उस्तादी हासिल कर ली है .देश जलता है .युवाओं के जख्मो और लाशो या जिन्दोव मुर्दों की चिताओं के आग में वे छप्पन पकवान बनाते-खाते है उनकी सत्ताए सुरखित रहती है .यही सत्ता की चाबी है -दूसरी ओर बेरोजगार अपने सीने पर जिन्दगी का बोझ लिए जीने पर मजबूर रहते है, वे चाहे जहाँ के हो,ज्यादा फर्क नही है। कृपया इस दर्द को महसूस करे!वैसे भी बेरोजगार जिन्दा कहाँ होते है? शेस-शुभ, और क्या कहू?

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