आखरी टीस आजमाने को,
जी तो चाहा था मुस्कराने को।
कितने मजबूर हो गये होंगे,
अनकही बा मुंह पे लाने को।
खुल के हंसना तो सबको आता है,
लोग तरसे है इक बहाने को।
हाथ काँटों से कर लिए जख्मी,
फूल बालो में इक सजाने को।
आस की बात हो की साँस 'अदा',
ये खिलोने थे टूट जाने को।
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