मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

जी तो चाहा था मुस्कराने को!



आखरी टीस आजमाने को,


जी तो चाहा था मुस्कराने को।


कितने मजबूर हो गये होंगे,


अनकही बा मुंह पे लाने को।


खुल के हंसना तो सबको आता है,


लोग तरसे है इक बहाने को।


हाथ काँटों से कर लिए जख्मी,


फूल बालो में इक सजाने को।


आस की बात हो की साँस 'अदा',


ये खिलोने थे टूट जाने को।


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6 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई साथ में आपको और आपके पुरे परिवार को नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
साल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा अगर पसंद आए ...


अर्श

बेनामी ने कहा…

'हाथ काँटों से कर लिए जख्मी
फूल बालों में इक सजाने को.' - सुंदर.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता लिखी है आप ने.
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को शुभकामनाएं !!

समयचक्र ने कहा…

मजा आ गया
आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...

shelley ने कहा…

kavita achchhi hai, bhavnao se otprot

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