गुरुवार, 27 नवंबर 2008

जय महाराष्ट्र!

भारत एक राष्ट्र है.इस में एक महाराष्ट्र है तो दूसरी तरफ़ सोराष्ट्र है.और आदमी का नाम धिर्त्राष्ट्र है,और जब कभी भी धिर्त्राष्ट्र पैदा होता है तो वह अंधा होता है। इसलिए महाभारत होता है.मई चाहता हूँ की भारत-भारत ही रहे,प्रतिभारत रहे,लेकिन वह महाभारत कदापि न बने.आज भारत ही नही हमारा जीवन भी महाभारत बन चुका है.उसमे कौरव-पांडव आमने-सामने खड़े होकर युद्धकी भाषा बोल रहे है.राष्ट्र हो या महाराष्ट्र,कोई कही भी रह सकता है,मुम्बई पुरे देशवासिओं का है.आज मुम्बई से उत्तर भारतिओं को निकला जा रहा है,क्यों भाई?कुदरत ने हमें सिर्फ़ जमीं बख्सी थी,लेकिन हमने कही हिंदुस्तान बनाया और कही पाकिस्तान.हमने जमीं को तो बांट दिया लेकिन हमारी ताकत उस समय मानी जायेगी,जब हम वायु को बांटकर दिखायेंगे.

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बुधवार, 12 नवंबर 2008

हे ईश्वर...कहां हो...?

...ईश्वर तो यकीनन है...एक बार की बात है ईश्वर अपने लिए एकांत खोज रहा था...मगर अनगिनत संख्या में मानव जाती के लोग उसे एकांत या विश्राम लेने ही नही देते थे...नारद जी वहां पहुंचे...ईश्वर का गमगीन चेहरा देख,परेशानी का सबब पूछा...कारण जान हंसने लगे...ईश्वर हैरान नारद बजाय सहानुभूति जताने के हंसते है...नाराज हो गए...तो नारद ने उसे कहा,'भग्वान'आदमी बाहर ही आपको खोजता है...अपने भीतर वो कभी कुछ नही खोजता...आप उसी के भीतर क्यों नही छिप जाते...ईश्वर को बात पसंद आ गई...तब से आदमी के भीतर ही छिपा बैठा रहता है...और एकाध इक्का-दुक्का आदमी ही उसकी खोज में अपने भीतर उतरता है...ईश्वर भी खुश...आदमी भी खुश...

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