गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

बम और हम! भाग २

आपको-शायद बहुतो को यह बात बुरी लगेगी.लेकिन एक बात जो बरी साफ है,कह दूं की आतंकवाद के लिए भले ही बीज विदेशी हो,जमीन हमारी है.हमने भी जमीन ऐसी उपजाऊ बना रखी है,की विदेशी आतंक का बीज आसानी से बो रहे है और हम है की जमीन को और उपजाऊ बना रहे है अब महाराष्ट्र में देखिये,आतंकी हमले कर के मर गए,कुछ छिप गए,बताये जा रहे है?ऐसे ही हमने अपने सम्पूर्ण देश व समाज में किया है,आतंक के लिए खेत तैयार कर दिए है.अच्छी तरह से जोत दिया है,सिंचाई की व्यवस्था है,उर्वरक है-सब तो उपलब्ध है,फ़िर कैसे विदेशी आतंक के बीज न बोने आए?उन्हें मालुम है की भारत में आतंक का छिपा उद्ध प्राक्सी वार वे बीस सालो से सफलता पूर्वक लादे हुए है,इसीलिए तो वे बार-बार आते है-जमीन से,जल से,और अब हवाई मार्ग से आयेंगे?कोन रोक पाया है, जो अब रोकेगा?वे नए तरीके ढूंढ लेंगे,फ़िर चकमा दे देंगे,तब फ़िर हम उन नए तरीको को लेकर आपस में एक-दुसरे के सी फोरेंगे यही तो कर रहे है.आतंकी हमलो के बाद रोज-रोज नए-नए विश्लेषण हो रहे है-ऐसे आए.यहां से आए,ऐसे दिया आतंक को अंजाम?आतंकियों ने जैसा चाह वैसा किया,हम अपने दरवाजे बंद नही कर पाए उनके लिए,हमारे वाचमैन सजग-तत्पर सक्षम नही रहे-वे हमारे घर में घुस आए!मतलब यह की घर में कोई गड़बडी है.इस घर या देश में कोई गड़बडी है.हमने अपने ही देश में ऐसे हालात बनाये है, ऐसी जमीन तैयार की है,जिसमे आतंक के फसल बोई - काटी जा सकती है.तो,क्या है ये हालात?कैसी है यह जमीन!क्या आप चाहेंगे की थोड़ा समय दे.और इस बारे में ढंग से सोंचे!हमारे इस मुल्क -इस समाज में जो भयानक गरीबी और विसमता है,जो भयानक शोषण और भर्ष्टाचार है-इन्ही के कारन बनी है जमीन-जिस पर बाहरी आतंकी बीज बोते है आतंक के!आप पाएंगे की यह भयानक भेदभाव!यह प्रचंड गरीबी और शोषण,यह भयंकर भर्ष्टाचार-हमारी सम्पूर्ण 'राष्ट्रिय जीवनशैली'को विकृत कर चुके है,'बुभुक्षित की न करोति पापं' भूखा कोन सा पाप नही करता!इसका अर्थ यह नही की हर भूखा पापी या अपराधी है.भूख सब को लगती है.भूख पाप नही है.लेकिन हम समाज में ऐसी विषमता पैदा करते है की लोग करोडो की संख्या में भुखमरी के शिकार हो,यह अपराध है,यह पाप है,एक बात आपको सही लगे न लगे!मई साफ कहना चाहता हू की हम अगर गरीबी,विषमता व भर्ष्टाचार से मुक्ति पा ले तो हम समृद्ध,सक्षम व इमानदार समाज में बदल जायेंगे.हम आतंकवाद ही नही हर तरह की हिंसा का जवाब देने की ताकत हासिल कर लेंगे!आतंकवाद सीमा पार से आकर यहाँ आश्रय पता है,यहाँ अपने निशाने चुनता है,यहाँ अपने हथियार छुपाता है,और फ़िर यही कत्लेआम करता है,यहाँ सत्ता -समाज में खलबली पैदा कर देता है-अराजकता पैदा हो जाती है.लोग प्रतिक्रिया में बदला लेने की बात सोचने लगते है.यह सब क्या है?हिंसा व आतंक की जमीन ही तो है!हम यह जमीन बनाना बंद कर दे तो हर तरह के आतंकवाद की जड़े ही उखड जायेगी!

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6 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने बडा सटीक लिखा ! आतन्कवाद के पनपने के लिये हम भी जिम्मेवार है कहीं ना कहीं ! बेहद सुन्दर लगा आपका ये आलेख !

सिर्फ़ एक राय भर है कि लेख के थोडे पैरे बना दिजिये , पढने मे आसानी रहेगी आपके पाठकॊ को ! क्रुपया अन्यथा ना ले !

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप ने बिलकुल सही लिखा, जब तक हम नही जागेगे, तब तक .....हां हम भी जिम्मेदार है.
धन्यवाद

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी पोस्ट लिखी है।सही कहा है जब तक हम नही जागेगें\तब तक यह आतंकवाद नही मिटेगा।

Unknown ने कहा…

मेरा ब्लॉग यहां देखे

Unknown ने कहा…

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Unknown ने कहा…

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