सोमवार, 12 जनवरी 2009

दुश्मन को जब दोस्त बनायेंगे,



सदियों की पहचान मिटा दी जायेगी,

पुरखो की तहजीब भुला दी जायेगी

जागो दहशत पहुची दरवाजे तक,

घर-घर में बारूद बिछा दी जायेगी

बरवादी के बाद जो रिश्ते सोचेंगे,

आंगन से दीवार हटा दी जायेगी

असली चेहरे सामने आने वाले है,

कल सब की तस्वीर दिखा दी जायेगी

कितने दिन और सियासत से खेलोगे,

नाकारा सरकार गिरा दी जायेगी

माजी अपने आपको फ़िर दुहरायेगा,

आजादी जब ख्वाब बना दी जायेगी

दुश्मन को जब दोस्त बनायेंगे,

नफरत की हर एक बात भुला दी जायेगी

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2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे भाई हम तो हर बार दोस्ती की ही दुहाई ही देते है, लेकिन कोई समझे भी ना

विवेक सिंह ने कहा…

दोस्ती का प्रयास तो हमेशा करना अच्छा है . पर अन्धा भरोसा नहीं !

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