फर्नीचर कारपेंटर
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8 वर्ष पहले
मां कि आंखो मे गंगा का जल लिखता हूं, बात नही कोई कठिन बात सरल लिखता हूं, महल के कलश मे,जीस सोने की चमक दिखती है,लूट मे मिला था वह, बात असल लिखता हूं। बच्चो की जान जिस दुध को पीकर गई है,उस दुध मे मिला था साजिश का गरल लिखता हूं। कुचली हुई कलिया,बर्बाद चमन है सारा राष्ट्रीय फुल है इस वतन का कमल लिखता हूं। कहने-सुनने मे लगता है,जुर्म के जैसा-बस इसलिए अदीबो मै रोज नही लिखता हूं।
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