सोमवार, 19 जनवरी 2009

शर्म का पता!

लोग कहते है की इस देश के नेताओ को शर्म नही आती।
अब,कोई नेता तो यह बताएगा नही की उसे शर्म क्यों नही आती।
इसलिए मैंने सोंचा की जाकर शर्म से ही पूछना चाहिए की वह क्यों नही आती?
लेकिन पूछने के लिए जाए कहां?किसी को शर्म का पता मालूम है?
मैंने एक दुकानदार से पुछा।
दुकानदार बोला,"मुझे नही पता कहां मिलेगी,हम शर्म का स्टाक नही रखते।"
"क्यों नही रखते?"
"जो माल खपता नही,उसे रखने से क्या फायदा?बेकार में जगह और घेरता है।जगह कितनी महगी है पता है?''
मैंने कई दुकाने देखी। बाजार में कहीं भी शर्म नही थी।
जिस दुकानदार से पूछता,वही सिर हिला देता था।
दो-चार बार पूछने के बाद ख़ुद मुझे पूछने में शर्म आने लगी।तब,एक दुकानदार के नोकर ने मालिक की नजर बचाकर धीरे से बताया, "किसी दुकान में शर्म नही रखी जाती। रखे तो भाव बढ़ाने में शर्म आती है।"पता
खोजते-खोजते मै आगे बढ़ा तो मुझे एक बूढा शायर मिला। वह फिल्मो में गाने लिखता था।
मैंने शर्म के बारे में पूछा तो वह शायराना मूड में आ गया। लगा शर्म की जवानी के किस्से सुनाने,जब वह आती थी तो गाल गुलाबी हो जाते थे। आँखे झुक जाती थी। पांव का अंगूठा जमीं कुरेदने लगता था।
आंचल अंगुली पर लिपटने लगता था। बात का जवाब कितनी धीमी और सुरीली आवाज में देती थी।"
मैंने बूढे से कहा, "बाबा,तुम मुझे शर्म का गजल मत सुनाओ। उसका पता बताओ।"
बूढे ने खास शायराना अंदाज में ही गहरी साँस ली,"मै कैसे बताऊ ?अब तो वह मेरे पास भी नही आती।
आजकल मै रिमिक्स गाने लिखता हूं। ''
शायर के किस्से सुनते-सुनते मै उसके साथ एक फ़िल्म के सेट पर पहुंच गया। वहां एक हिरोइन शर्मा रही थी।
एक-एक कपड़ा उतारती जाती थी और शर्माती जाती थी।
उसने एक कपड़ा उतारा और शर्म से दोहरी हो गयी। दूसरा उतारा और शर्म से चोहरी हो गयी।
उसे होलसेल में शर्म आ रही थी चोली उतारते-उतारते वह अचानक रुक गयी और जोर से ड्रेस डिजाइनर के ऊपर चिल्लाई, "यह कैसा हुक लगाया है ?खुलता ही नही।
मेरी ड्रेस में ख़राब क्वालती का हुक लगाते हो? तुम्हे शर्म नही आती?"
इस बेमानी खोज से परेशां होकर मैंने सोंचा,एक बार किसी नेता से भी पूछ कर देख लेते है। क्या पता, उसके मुंह से कुछ ऐसा निकल जाए की शर्म का अता-पता मिल जाए।
तो मैंने एक नेता से पूछा,"सुना है, आपको शर्म नही आती।"
नेता बोला,"तो?''
"तो मैंने बोला किसी बात पर शर्म न आया तो बुरी बात है न?जनता बहुत परेशां है।"
"तो?"
"क्या बेशरमे की तरह तो-तो- कर रहे है। अगली बार जनता ने आपको नही चुना तो? "तो किसी दुसरे बेशरमे को चुनेगी। " नेता मुस्करा कर बोला।
मैंने तमाम लोगो से शर्म का पता पूछा।
पर किसी से भी नही मिला।
मिलता भी कैसे?
जिस सब्जी वाले से पूछा,वह २० टका कम तोलता था।
जिस कपड़े वाले से पूछा,वह १० टका कम नापता था।
जिस टेक्सी में बैठकर मै शर्म को खोजने निकला था,वह २५ टका तेज चलता था।
१०-२० टका कमाने के चक्कर में इस देश ने १०० टका शर गवां दी है।
अब् आप बताइए,आपको क्या लगता है?क्या सब कुछ ख़तम हो चुका है?
पर इस देश में सब कुछ कैसे ख़त्म हो सकता है?यह देश तो पुनर्जन्म में विश्वास करती है।
शर्म का भी पुनर्जन्म हो सकता है।
पर जो शर्म का पुनर्जन्म करवा सकता हो, उस चमत्कारी वक्ती को कहां खोजू?

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6 टिप्‍पणियां:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

वाह्! बहुत बढिया व्यंग्य पेश किया आपने....
अब रही बात शर्म की तो अभी थोडा सा स्टाक हमारे पास पडा है. अगर कहीं 100-50 ग्राम चाहिए तो बेझिझक मांग लिजिए.
वैसे तो ये शर्म बहुत महंगी चीज है, लेकिन आपके लिए वो भी फ्री...

राज भाटिय़ा ने कहा…

भारत मै तो बहुत तरक्की हो गई है, इस कारण अब भारत मै ऎसी बेकार चीज कहां मिलेगी. तुम भी अजीब हो हम चांद पर पहुच गये, ओर तुम अभी भी शर्म शर्म चिल्ला रहे हो:
बहुत सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवाद

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर लेख लिखा आपने..।

Udan Tashtari ने कहा…

अभी निकट भविष्य में तो शर्म के पुनर्जन्म की संभावनाऐं नहीं दिखती. सटीक व्यंग्य.

विवेक सिंह ने कहा…

शर्म उनको मगर नहीं आती !

Akanksha Yadav ने कहा…

सुन्दर ब्लॉग....बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

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